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भगवदगीता - अध्याय 5, श्लोक 13 (Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 13 in Hindi)

भगवदगीता  - अध्याय 5, श्लोक 13
Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 13 in Hindi

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Bhagwadgeeta Adhyay 5, Shlok 13 in Hindi

सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी ।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन्‌ ॥

श्री भगवान ने कहा ...

अन्तःकरण जिसके वश में है, ऐसा सांख्य योग का आचरण करने वाला पुरुष न करता हुआ और न करवाता हुआ ही नवद्वारों वाले शरीर रूप घर में सब कर्मों को मन से त्यागकर आनंदपूर्वक सच्चिदानंदघन परमात्मा के स्वरूप में स्थित रहता है । 

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- अध्याय 5, श्लोक 13
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