न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
Na hanyate hanyamane sharire
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इस श्लोक में योगेश्वर श्री कृष्णा के द्वारा आत्मा को कभी न मरने वाला बता कर यह कहने का सफल प्रयास किया जा रहा है, कि जन्म -मृत्यु हमेशा शरीर का होता है, न कि, अविनाशी आत्मा का |
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो-
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
अर्थ :-
यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है, क्योंकि यह अजन्मा, नित्य, सनातन और पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता॥
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