भगवद्गीता का पहला अध्याय (हिन्दी में) -
Bhagwat Geeta Ka Pehla Adhyay Hindi Mein
आज वो दिन आ चुका था , जिसका इंतजार सभी पांडवों को बहुत ही बेसब्री से था | पांचों भाइयों की आंखों के सामने दुर्योधन और कौरव पक्ष के द्वारा बार - बार किए गए अपमानों और कुकृत्यों के दृश्य अनायास ही परिलक्षित हो रहे थे , जिस कारण सभी प्रतिशोध की भावना में डूबे अब कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर अपना - अपना मोर्चा संभाले एकत्रित हो चुके थे |
उधर दूसरी तरफ पांडवों के शोणित को प्यासी कौरवों की भयंकर सेना सज धज के तैयार थी | कौरवों की सेना में जैसे महारथियों की होड़ लगी थी , जिसमें भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और विकर्ण आदि थे |
लेकिन पांडवों की सेना भी कुछ कम नहीं थी | उनके तरफ तो स्वयं योगियों के भी ईश्वर भगवान श्रीकृष्ण, निद्रा पर विजय प्राप्त करने वाले अर्जुन, धर्मराज युधिष्ठिर, विशालकाय उदर वाले भीम के साथ - साथ अन्य दो भाई नकुल और सहदेव और भी बहुत सारे एक से बढ़कर एक योद्धा थे |
इसी बीच दुर्योधन के पिता धृतराष्ट्र ने अपनी इच्छा प्रकट करते हुए श्रीकृष्ण द्वैपायन "महर्षि वेदव्यास" के पुत्र संजय से ये प्रश्न किया , कि.....
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः ।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥1-1॥
हे संजय ! वर्तमान समय में कुरुक्षेत्र रूपी धर्मभूमी में एकत्रित हुए युद्ध की इच्छा वाले मेरे ( कौरव ) और पांडू के पुत्र क्या कर रहे हैं ?
धृतराष्ट्र के प्रश्नों का उत्तर देते हुए संजय ने कहा -
हे महाराज ! वर्तमान समय में कुरुक्षेत्र की पावन भूमि में एकत्रित पांडवों की सेना का अवलोकन कर राजा दुर्योधन गुरु द्रोण के पास पहुंच चुके हैं , और उनसे पांडवों की सेना के बारे में बताते हुए कह रहे हैं , कि हे आचार्य !
आप तनिक एकबार पांडवों की भारी सेना की तरफ देखिए ! इस सेना में बड़े - बड़े धनुर्धारी और युद्ध में निपुण योद्धा हैं, जिसमें पांचों पांडव भाइयों के अलावा अर्जुन के समान शूरवीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद, धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान कशिराज, पुरूजीत, कुंतीभोज और मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य, पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान उत्तमौजा , सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पांचों पुत्र हैं |
पांडवों की सेना का वर्णन करने के उपरांत दुर्योधन ने गुरु द्रोण से विनती पूर्वक निवेदन किया और कहा - हे ब्राह्मणश्रेष्ठ ! अपनें ( कौरव ) पक्ष में जो भी प्रधान हैं आप उन्हें भलीभांति समझ लीजिए | फिर भी मैं आपकी जानकारी के लिए मेरी सेना में जो - जो सेनापति हैं, उन्हें मैं आपको बतलाता हूं |
दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य से क्या कहा ?
फिर दुर्योधन नें गुरु श्री द्रोण से कहा -
मेरे लिए जीवन की आशा त्याग देनें वाले बहुत सारे शूरवीर अनेक प्रकार के अस्त्र - शास्त्रों से सुसज्जित और सब के सब युद्ध कौशल में चतुर एवं निपुण हमारी इस सेना मैं हैं , जिसमें आप स्वयं ( द्रोणाचार्य ) , भिष्मपितामह, कर्ण, संग्रामविजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा आदि हैं | थोड़ा गंभीर आवाज में गुरु द्रोण को आश्वस्त करते हुए कौरव कुमार ने कहा - जिन लोगों के बारे में मैंने अभी बताया उनके अलावा और भी मेरे लिए ( कौरव पक्ष के लिए ) अपने जीवन की आशा त्याग देनें वाले बहुत सारे शूरवीर अनेक प्रकार के अस्त्र - शस्त्रों से सुसज्जित हैं और सभी युद्ध कला में चतुर और निपुण हैं | इसलिए आप सभी लोग हमारी सेना के महाबली और सेनापति भीष्म पितामह की सभी ओर से पराक्रम के साथ रक्षा करें |
निवेदन : - सम्पूर्ण भगवतगीता हमारी हिंदी भाषा में इसी ब्लॉग वेबसाइट के साथ - साथ हमारे यूट्यूब चैनल पर आपको मिलेगी | आप हमारे द्वारा प्रकशित इस अनुपम उपहार के बारे में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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