मुझे अपना बचपन अच्छा लगता है -
Emotional Short story in Hindi
यह एक मार्मिक और सामाजिक लघु कथा है, जो ये बताता है, कि कभी भी अपने से छोटों पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहिए |
आज मैं फिर एक बार अपनी पांचों उंगलियां बराबर करने लगा, तो कनिष्ठिका ने कहा....
आशीष भैया, आशीष भैया ..
मैं तो बहुत छोटी हूं, आप मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो ? मुझे इन चारों भाई बहनों के प्रेम से वंचित क्यों कर रहे हो ? क्या आप चाहते हो कि, मैं भी अपना नन्हा बचपन त्याग के जल्दी से बड़ी हो जाऊं और उन इन सभी के साथ लडूं झगड़ू ? जैसा सभी करते हैं |
आप तो मेरे सबसे अच्छे वाले भैया हो ना ! तो समझो ना ! मुझे अपना बचपना बहुत ही अच्छा लगता है, आपका प्रेम और इन चारों का भी |
मैं अभी हंसना चाहती हूं | सुबह - सुबह आपकी उंगली पकड़ के ओस से भीगे घासों पर चलना चाहती हूं | आपके दुलार की मिठास महसूस करना चाहती हूं और महसूस करना चाहती हूं, आप सबका सजीव प्रेम !
Learning
जाने अनजाने में सभी माता - पिता, बड़े भाई - बहन ऐसी गलतियां करते रहते हैं, जिसका अप्रत्यक्ष असर घर में छोटे बच्चों पर पड़ता है और उनका बचपन छीन जाता है |
अपने घर में अपने बच्चों, छोटे भाई - बहनों की तुलना उनके खुद के भाई बहनों या किसी और से कभी ना करें | उन्हें समय समय पर ये एहसास दिलाएं कि किस समय उनके कौन सा काम सही है | यदि आप ऐसा करते हैं, तो उनको उनके सुनहरे और प्यारे बचपन के साथ - साथ आपका ढेर सारा प्यार भी मिलेगा और आपका भी हृदय खिल उठेगा |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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