शान्तिं निर्वाणपरमां - भगवद्गीता आत्मसंयम योग
इधर उधर देखने की अपेक्षा अपने आप को देखना | जैसे एक दुल्हन बार बार देखती है आइने में अपने आप को संवारते हुए अपने पति - प्रियतम की खातिर | यही श्रेष्ठ है | यही जीवन का श्रृंगार है |किसी के लिए मन में किसी इच्छा का जागृत होना स्वाभाविक है, परन्तु अपने लिए अपनी इच्छा का जागृत होना परम कल्याण और शांति का सूचक है | ऐसा होना व्यक्ति को आत्मबोध की ओर ले जाता है |
जब योगी अर्थात् उस व्यक्ति को जिसने यह जान लिया है, कि जो भी चीजें बाहरी दुनियां में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई दे रही हैं वो दरसअल वास्तविक नहीं हैं, तब वह व्यक्ति अपने आप में ही सब कुछ देखने लगता है, महसूस करने लगता और अपने मन में बैठकर अपना श्रृंगार करने लगता है |
उस व्यक्ति के निम्न गुण इस प्रकार से हो सकते हैं |
1. पूर्ण रूप से अनुशासित हो जाना |
2. भीतर से शुद्ध हो जाना |
3. निंदा और प्रसंशा से बहुत दूर होना |
4. मन, शरीर और आत्मा का एक होना |
5. विवेक, बुद्धि, वाणी, वचन तथा विनय का समुचित ज्ञान के साथ साथ समन्यवय हो जाना |
उपरोक्त गुणों के अतिरिक्त भी बहुत सारे गुण हैं जो उस व्यक्ति को सकल संसार से अलग रखते हैं | ऐसा होने से वह व्यक्ति ऐसी परम शांति को अपने अंदर ही पा जाता है, जो कभी भी भंग न होने वाली है और न ही उसका कोई काट है, जिसके द्वारा उस शांति का विच्छेदन किया जा सके |
इस स्थिति में सारी इन्द्रियां और मन उस सीमा तक अनुशासित हो जाती हैं जब तमस विचार अपने आप ही उसकी पराकाष्ठा की परम ज्योति से दूर हो जाते हैं | ऐसे विचित्र एवं परम निर्वाण रूपी स्थिति को प्राप्त व्यक्ति देव तुल्य होता है |
अब यह प्रश्न विशेष रूप से मन में आता है, कि कोई व्यक्ति इस स्थिति तक पहुंचेगा, कैसे ?
क्या ऐसी स्थिति में पहुंचना आसान है ? या फिर नहीं ?
और यदि इस स्थिति में कोई जाना चाहता है तो उसे किन - किन परिस्थितियों से गुजरना होगा ?
इन सभी प्रश्नों को कुछ बिंदुओं अर्थात् कुछ दिव्य आचरणों के माध्यम से हल किया जा सकता है |
1. दैनिक दिनचर्या पर विशेष ध्यान देकर अपने आप की शांति हेतु एकांत में विचार - मंथन करना |
2. अपनी अच्छाइयों और बुराइयों को स्वयं खोजना और लिखना |
3. धीरे - धीरे सारी बुराइयों को पूर्णतः नष्ट कर देना |
4. अच्छाइयों को अपने आप में प्रकाशित करना |
5. अब स्वयं का संग करना |
6. ऐसे लोगों से न मिलना जो दूषित विचार वाले हैं |
7. निद्रा, भोजन, पठन - पाठन, मेल - जोल और आधुनिक एवं वर्तमान समय की बात की जाए तो मोबाइल फ़ोन को अपने नियंत्रण में रखना |
8. अच्छी पुस्तकों को पढ़ना और सबसे विशेष बात ये है, कि सबको धारण करना |
9. सात्विक आचरण करना |
10. ईश्वर वंदन में मन को नियंत्रित करना |
इन सभी कार्यों से एक साधारण व्यक्ति भी देवता बन सकता है और परम निर्वाण रूपी शांति को प्राप्त कर अपनी आत्मा को परमात्मा में नियत कर सकता है |
आपने इस लेख से क्या सीखा ? हमें अवश्य बताएं | हमें आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा |
❤️🌺आप सभी का जीवन मंगलमय हो 🌺❤️
🙏🙏❤️🌺जय श्री राधे कृष्ण ❤️🌺🙏🙏
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
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