अपनों के सपने - हिन्दी कविता
Emotional poem on family in hindi
अपनों के सपनों के तले, खुद के सपने दफन हुए |
रातें ओछी हो गईं, बिछौने सारे कफ़न हुए ||
अज्ञात की लालसा में हम, दिन - रात चलते रहे |
त्याग पतित पावनी गंगा, खारे समंदर को अपना कहते रहे ||
बुझ न पायी मन की प्यास, सारे सागर रो पड़े |
जहां से चले थे हम कुछ समय पूर्व, हैं आज भी वहीं खड़े ||
झूठी ताड़ना और घात के, कभी शिकार हुए अकेले में |
कभी लूटे गए बाजारों में, नंगी दुनियां के हाथों मेले में ||
समेट के पतझड़ को फिर से, बहार सारे चमन हुए |
तनिक आस जगी मन में तो, हम सावन के सजन हुए ||
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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