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सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविता - गर्मी Best Poem on Social Issues in hindi

 सामाजिक मुद्दों पर आधारित कविता - गर्मी
Best Poem on Social Issues in hindi

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Social Poem in Hindi - Garmi

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जीवन ! 
जो वास्तव में बहुत ही खूबसूरत है और क्यों न हो ? आखिर ईश्वर जीवन की रचना अर्थात किसी भी जीव की रचना करते समय अपने जैसे ही तो उसे बनाता है | फिर भी हर आदमी को ईश्वर से शिकायत रहती है | पता नहीं क्यों कोई भी इस बात को समझना ही नहीं चाहता, कि 
"मनुष्य ईश्वर की सबसे अनमोल कृतियों में सर्वोपरि है |"
यदि मैं इस बात को नासमझी कहूं तो मेरे अल्पज्ञान से उत्पन्न विचारों के खांचे में ये बात बैठती ही नहीं, कि मनुष्य नासमझ या विवेकहीन है | तो फिर प्रश्न उठता है, कि क्या किया जाए ? अधिकतर मनुष्यों को केवल अपना ही हित क्यों दिखता है ?
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तन की गर्मी,  मन की गर्मी,
रण की गर्मी, धन की गर्मी |
धरती से लेकर आसमान तक,
सबकी अपनी अपनी गर्मी ||

नभ की गर्मी है सूरज की,
यौवन की गर्मी सूरत की |
दो पल के सांसों की गर्मी,
सबकी अपनी अपनी गर्मी ||

जुगनू की गर्मी रात की,
बातों में गर्मी बात की |
मूर्खों में गर्मी जात की,
सबकी अपनी अपनी गर्मी ||

पैसे की गर्मी बड़ी सयानी,
आते ही सब खा जाती है |
सब नेह तोड़ दे पलभर में,
रिश्ते माटी कर जाती है |

है गर्मी की सत्ता ही क्या ?
मन मधुर चरित मिल जाए जब |
ना टिकी की जीवन भर,
उसकी अपनी अपनी गर्मी ||

© कवि आशीष उपाध्याय ' एकाकी '
गोरखपुर, उत्तर - प्रदेश 
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