साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः -
Sahitya sangeet kala vihin shlok hindi
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Sahitya sangeet kala vihin shlok hindi |
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इस श्लोक में साहित्य, संगीत और कला की मानव जीवन में क्या विशेषता है, उसको बताया गया है |
साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥
जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला से विहीन है वह साक्षात पूंछ और सींगों से रहित पशु के समान है। ये पशुओं के लिए बड़े सौभाग्य की बात है, कि वह बिना घास खाए ही जीवित रहता है |
संदेश
ऐसा मनुष्य जिसे साहित्य, संगीत और कला में कोई रुचि नहीं है, वह मनुष्य सींग और पूंछ न होते हुए भी पशु के समान है | वह पशु के समान तो है, लेकिन वह घास नहीं खाता यह पशुओं के लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है | क्योंकि यदि वह घास खाता तो पशुओं को खाने के लिए चार की दिक्कत हो जाती |
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