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अनन्त शास्त्रं बहुलाश्च विद्या (Sanskrit subhasitani- anant shastram)

अनन्त शास्त्रं बहुलाश्च विद्या  
(Sanskrit subhasitani- anant shastram)

Sanskrit subhasitani-अनन्त शास्त्रं बहुलाश्च विद्या - अनन्त शास्त्रं बहुलाश्च विद्या अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च | यत्सार भूतं तदुपासनियं हंसो यथा क्षीर`
Anantshastram Bahulashch Vidya Shlok

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इस श्लोक में मानव जीवन के बारे में बताया गया है | 

अनन्त शास्त्रं बहुलाश्च विद्या अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च |
यत्सार भूतं तदुपासनियं हंसो यथा क्षीर मिवाम्बुमथ्यात |

अर्थ :-
 शास्त्र अनेक हैं और विद्याएँ भी अनेक हैं | मानव जीवन की अवधि बहुत ही अल्प है  एवं  विघ्न भी  बहुत हैं | 
अतः जिस प्रकार हँस पानी अलग कर केवल दूध ही लेता है, ठीक उसी प्रकार हमें भी सभी शास्त्रों के मूल को ग्रहण करके अपने कर्म में लग जाना चाहिए | 

सन्देश :- 
हमें अपने अल्प जीवनकाल में किसी एक उद्देश्य को अपनाकर ईमानदरी एवं लगन के साथ काम करना चाहिए | 

© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश 

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