आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्
(Aarambhgurvi kshayini kramen in hindi)
Aarambhgurvi kshayini kramen in hindi |
About
इस श्लोक में सज्जन व्यक्ति के गुणों और उनकी मित्रता को विधिवत समझाया गया है |
आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेणलघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्।दिनस्य पूर्वार्धपरार्धभिन्नाछायेव मैत्री खलसज्जनानाम्।।
अर्थात्
जब दिन निकलता है तो सूर्य के प्रकाश से छाया छोटी बनती है और जैसे जैसे दिन आगे बढ़ता है तो छाया छोटी होती चली जाती है | ठीक इसी प्रकार सज्जनों को मित्रता होती है, जो शुरू में तो सामान्य वार्तालाप से शुरुआत होती है, परन्तु जैसे - जैसे समय गुजरता है, उस मित्रता में प्रगाढ़ता होने लगती है |
परन्तु दुष्टों की मित्रता दिन के दूसरे प्रहर की छाया की तरह होती है, जो शुरुआत में तो घनिष्ट होती है, लेकिन स्वार्थ सिद्धि के पश्चात धीरे - धीरे क्षीण हो जाती है अर्थात् खतम हो जाती है, जैसे दिन ढलते ही छाया |
संदेश -
हमें हमेशा सज्जनों से संबंध रखने चाहिए, न कि कुटिल हृदय वाले दुष्टों से |
नीतिशतकम्
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी".
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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