पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
(Pibanti nadya shlok meaning in Hindi)
About
इस श्लोक में एक सज्जन व्यक्ति तथा उसके गुणों को व्याख्या की गई है |
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः।स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाःपरोपकाराय सतां विभूतयः।।
अर्थात्
जिस प्रकार नदियाँ अपना जल स्वयं नहीं पीतीं, वृक्ष की शाखाओं पर लगने वाले फल को वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते, बादल स्वयं के द्वारा सिंचित किए गए फसल स्वयं नहीं खाते ठीक उसी प्रकार सज्जनों अर्थात् उदार हृदय वाले लोगों की समृद्धि स्वयं के लिए न होकर दूसरे लोगों के लिए होती है | साधारण शब्दों में समझ सकते हैं कि परोपकारी व्यक्ति सदैव दूसरों को सहायता के लिए खड़ा रहता है |
संदेश
नदियों, बादलों और वृक्ष की तरह परोपकार को धारण करते हुए हर व्यक्ति को अपने सुंदर जीवन का आनंद लेना चाहिए |
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
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