आसान है क्या ? (सामाजिक समस्या पर आधारित कविता) -
Best social poems in Hindi
मखमली सोफे पे बैठ,
कलम चलाना आसान है क्या ?
चिलचिलाती धूप में, चंद रुपयों की खातिर,
जनता लुभाना आसान है क्या ?
कान खुजाके, पैर पकड़ के,
नोट- वोट खेलना आसान है क्या ?
मुर्दे को जिंदा, जिंदे को मुर्दा बताके,
बातों में सबको उलझाना आसान है क्या ?
यदि आसान सब होता, तो,
मशीन से आलू के बदले सोना निकलता,
ट्रैक्टर दिल्ली नहीं, खेतों में होते,
किसान सिक्के नहीं नोट गिनता ||
यदि सबकुछ बहुत ही आसान होता,तो,
भारतीय युवा बेरोजगार न होता,
निठल्लों के पास रोजगार न होता,
और मैं "एकाकी" न होता ||
© कवि आशीष उपाध्याय "एकाकी"
गोरखपुर, उत्तर - प्रदेश
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